मॉस्को । रूस से भारत को मिलने वाले एस-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी अपने तय समय पर पूरी नहीं हो सकेगी। इसे भारत की सुरक्षा के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। भारत ने 2018 में रूस के साथ 5.43 अरब डॉलर में पांच एस-400 मिसाइल सिस्टम स्क्वाड्रन का समझौता किया था। इसकी डिलीवरी 2024 तक पूरी होने वाली थी। रूस ने अभी तक भारत को एस-400 की तीन स्क्वाड्रन ही सौंपे हैं। इनमें से दो को पूर्व और पश्चिम की सीमाओं पर तैनात किया गया है। एस-400 को खासतौर पर चीन के खिलाफ इस्तेमाल के लिए खरीदा गया है। यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस और चीन में दोस्ती काफी गहरी हुई है। हाल में ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की यात्रा भी की है। ऐसे में एस-400 की डिलीवरी में देरी को चीन से भी जोड़ा जा रहा है, हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
भारतीय वायु सेना ने एस-400 की डिलीवरी में हो रही देरी की पुष्टि की है। वायु सेना ने इस कारण 2024 के लिए अपने अनुमानित खरीद बजट को भी कम कर दिया है। बताया जा रहा है कि रूस से एस-400 मिलने में देरी यूक्रेन के साथ जारी युद्ध से पैदा हुए हालात के कारण हुई है। भारतीय वायु सेना ने रक्षा पर संसदीय समिति को सूचित करते हुए कहा था कि एस-400 एक बड़ा प्रोजक्ट है। युद्ध के कारण आपूर्ति बंद कर दी गई है। हमारे पास इस साल एक बड़ी आपूर्ति थी, जो अब नहीं होने वाली है। उन्होंने (रूस) हमें लिखित रूप में दिया है कि वे इसे डिलीवर करने में सक्षम नहीं हैं।
मीडिया के अनुसार इस मामले से जानकारी रखने वाले दो लोगों ने कहा कि भारत को बाकी बचे एस-400 के दो स्क्वाड्रन को वित्तीय वर्ष 2024 में डिलीवर किया जाना था। इसमें अब देरी हो सकती है। ताजा समय-सीमा स्पष्ट नहीं है। ऐसे में रूस से एस-400 मिलने में वक्त लग सकता है। एस-400 को रूसी कंपनी अल्माज-एंटी ने डिजाइन किया है। इसका निर्माण फकेल मशीन-बिल्डिंग डिजाइन ब्यूरो करती है। एस-400 की प्रति सिस्टम लागत 300 मिलियन डॉलर है। यह मिसाइल सिस्टम 28 अप्रैल 2007 से ही रूसी सेना में ऑपरेशनल है।
एस-400 ट्र्रायम्फ के नाम से मशहूर एस-400 का नाटो रिपोर्टिंग नाम एसए-21 ग्रोवलर है। इसे एस-300 पीएमयू-3 के नाम से भी जाना जाता है। यह सतह से हवा में मार करने वाला एक मोबाइल मिसाइल सिस्टम है। इसे एस-300 को अपग्रेड कर विकसित किया गया है। एस-400 सिस्टम का विकास 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ और जनवरी 1993 में रूसी वायु सेना ने इसकी घोषणा की थी। 12 फरवरी 1999 को अस्त्राखान में कपुस्टिन यार में एस-400 का पहला सफल परीक्षण किया गया था। एस-400 के निर्माण में अल्माज-एंटी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एलेक्जेंडर लेमन्स्की ने प्रमुख भूमिका निभाई थी।
एस-400 मिसाइल सिस्टम में 91एन6ई पेनोरामिक रडार शामिल होता है, जो 150 किलोमीटर की रेंज में एंटी स्टील्थ लक्ष्यों का पता लगा सकता है। यह रडार बैलिस्टिक मिसाइल का 200 किमी की रेंज में पता लगा सकता है। चार मीटर से बड़े लक्ष्यों को यह 390 किलोमीटर की रेंज से डिटेक्ट कर सकता है। यह स्ट्रैटजिक बॉम्बर विमान को 400 किलोमीटर की दूरी से पहचान सकता है। इसमें 96एल6 हाई एल्टीट्यूड रडार भी लगा हुआ है, जो एक साथ 100 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है। यह पहाड़ी इलाकों में भी काफी प्रभावी है।