चमत्कारिक सिद्धपीठ श्री फलौदी माता मंदिर में उमडे़ हजारों श्रद्धालु* *नवरात्र में महाअष्टमी पर्व पर खैराबादधाम में दिखा उत्सवी वातावरण*
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रामगंजमंडी रामगंजमंडी के पास खैराबाद में अखिल भारतीय मेडतवाल (वैश्य) समाज की सिद्धपीठ मंदिर श्री फलौदी माताजी महाराज में नवरात्र महोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। देश में यह इकलौता अष्टकोणीय देवी मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है। मंदिर के गर्भगृह में सिंहासन पर श्रीफलौदी माताजी का अलौकिक स्वरूप विराजित है। इन दिनों मंदिर परिसर में रोजाना सभी वर्गों के 1200 से अधिक बच्चों के लिये कन्याभोज आयोजित हो रहा है।
मंदिर श्रीफलौदी माताजी महाराज समिति के कार्यकारी अध्यक्ष सेठ मोहनदास करोडिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री विष्णुप्रसाद करोडिया मंडावर ने बताया कि भारत में समाज का यह इकलौता प्राचीन मंदिर है। इस पौराणिक सिद्धपीठ में सामाजिक एकता, धार्मिक सद्भाव एवं मेलजोल की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है। यहां सभी समुदायों के भक्त चमत्कारिक श्री फलौदी माताजी के दर्शन कर दिव्य अनुभूति महसूस करते हैं। गुरूवार को अष्टमी पर माताजी के विशेष दर्शन के लिये 14 राज्यों से सैकडों श्रद्धालु सपरिवार यहां पहंुचे। उन्होंने परिक्रमा लगाकर अपने बच्चों, परिवार, समाज एवं देश में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की मन्नतें मागी। मान्यता है कि नवरात्र के रात्रिकाल में माताजी यहां स्वयं विचरण करती हैं।
नवरात्र आयोजन समिति के प्रभारी दिलीप गुप्ता जुल्मी वाले एवं पुरूषोत्तम चौधरी ने बताया कि नवरात्र स्थापना से रामनवमी तक यहां समाजबंधुओं के सहयोग से करीब 15 हजार बच्चों के लिये कन्या भोज होता है। मान्यता है कि फलदायिनी मां फलौदी के श्रीचरणांे के दर्शन करने का जिन्हें अवसर मिलता है, उनकी मनोकामनायंे अवश्य पूरी होती है। तीर्थस्थल पर दान प्रतिग्रहण करने वाले को मां फलौदी अनंत गुना लौटाती है। नवरात्र में चुनरी महोत्सव में हजारों महिलायें मिलकर माताजी को चुनरी चढाती हैं।
बुजुर्गों ने बताया कि श्री फलौदी माताजी ने विराजित होते समय भक्तिभाव से प्रसन्न होकर बोला था कि मुझे यहां फलौदी रूप में ही जानना और मानना। तब से ही सम्पूर्ण मेड़तवाल वैश्य समाज में श्री फलौदी माताजी अर्थात् फल देने वाली महादेवी के प्राकट्य दिवस के रूप में प्रतिवर्ष बसंत पंचमी महोत्सव मनाने की परम्परा जारी है।
*मां फलौदी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी का स्वरूप*
मंदिर पुजारी पं.अशोक द्विवेदी ने बताया कि महादेवी श्रीफलौदी माताजी महाराज ‘अनेक रूप रूपाय महालक्ष्में नमोस्तुते’ के रूप में यहां विराजित हैं। दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी तीनों देवियांे की शक्तियां मां फलौदी में अंतर्निहित हैं। मां फलौदी को दुर्गा की द्धितीय ब्रह्मचारिणी का रूप माना गया है। वे 6 एश्वर्य से सम्पन्न हैं, इसलिये उनके नाम के आगे ‘श्री’ लिखा जाता है। उनके एक उंचे हस्त में दुर्गा का वास है। दूसरा हस्त नीचे वरद मुद्रा में हैं, जो लक्ष्मी स्वरूप है। गदा-पदम लक्ष्मी के पास होते हैं, इसलिये अनन्त फल देने वाली फलौदी माताजी को भी गदा पदम धारी माना गया है। श्रेष्ठ देवी स्वरूप होने से मां फलौदी को ‘महाराज’ कहकर पुकारा जाता है। दुर्गास्वरूप होने से प्रतिवर्ष नवरात्र पर्व में 9 दिन तक यहां विशेष अनुष्ठान एवं कन्याभोज होता हैं एवं अष्टमी पर महापूजा होती है। मां फलौदी मंदिर के गर्भगृह में सन 1960 से अखंड ज्योति प्रज्जवलित है। ‘दीपो मृत्यु विनाशनः’ अर्थात् यह अखंड ज्योति भक्तों के मृत्यु तुल्य कष्टों को नष्ट कर देती है।
*मंदिर में पवित्र जलकुंड*
मंदिर संयोजक मोहनलाल चौधरी ने बताया कि इस ऐतिहासिक स्थल पर देश के सभी राज्यों से विभिन्न जाति-वर्ग के श्रद्धालु वर्षपर्यंत दर्शन करने आते हैं। रोज सुबह-शाम मंदिर में मंगलाभोग, राजभोग सामूहिक संगीतमय आरती होती है। मंदिर के गर्भगृह में सोने, चांदी व कांच की सुन्दर व दैदीप्यमान कारीगरी व चित्रांकन दर्शनीय है। गुम्बदों पर अनूठी वास्तुकला है। मंदिर प्रांगण में एक प्राचीन जलकुंड (बावड़ी) है, जिसके जल से पाचन संबंधी रोग के साथ-साथ त्वचा रोग भी मुक्त होते हैं।
*समाज में आज भी पंचायत परम्परा*
पूर्व महामंत्री गोपालचंद्र गुप्ता बारवां वाले ने बताया कि मंदिर में प्राचीन शिलालेख के अनुसार, संवत् 1848 (सन 1792) में गढ गागरोन सरकार सूबा उज्जैन अमकाल महाराज , महाराव उम्मेदसिंह सदमानस राजमान जालिम सिंह झाला के अमल में समाज के 52 गौत्रों की ओर से माताजी मंदिर का पहला डोरा फेरा गया। समाज के बुजुर्गों ने 1792 में माह सुदी पंचमी के दिन मंदिर में कलश स्थापित किया अर्थात सरा रोपकर शिलालेख लगाया। बसंत पंचमी से ही श्रीफलौदी माताजी के द्वादशवर्षीय मेले की शुरूआत हुई। प्रत्येक 12 वर्ष में खैराबादधाम में पांचवे कुम्भ की तरह श्री फलौदी द्वादशवर्षीय मेला आयोजित होता है। इस विराट सामाजिक मेले में देश-विदेश से 1 लाख से अधिक श्रद्धालु 7 दिन अस्थायी टेंटों में संयुक्त परिवार के साथ रहते हैं।