।।होली का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व।।* *पंडित दिनेश शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) इंदौर(मध्यप्रदेश)* *होकम प्रजापति मंडावर*

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भारत में होली का त्यौहार सभी के जीवन में बहुत सारी खुशियाँ और रंग भरता है, लोगों के जीवन को रंगीन बनाने के कारण इसे आमतौर पर 'रंग महोत्सव' कहा गया है। यह लोगों के बीच एकता और प्यार लाता है। यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक हिंदू त्यौहार है, जो प्राचीन समय से पुरानी पीढियों द्वारा मनाया जाता रहा है और प्रत्येक वर्ष नई पीढी द्वारा इसका अनुकरण किया जा रहा है।
यह एक त्यौहारी रस्म है, जिसमें सब एक साथ होलिका के आलाव को जलाते हैं, गाना गाते हैं और नाचते हैं, इस मान्यता के साथ कि सभी बुरी आदतें और बुरी शक्तियाँ होलिका के साथ जल गयी और नई ऊर्जा और अच्छी आदतों से अपने जीवन में उपलब्धियों को प्राप्त करेंगे। होली खेलने के लिए लोग खुली सड़क, पार्क और इमारतों में पानी की बंदूकों (पिचकारी) और गुब्बारे का उपयोग करते हैं। कुछ संगीत, वाद्ययंत्र, गीत गाने और नृत्य करने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। वे अपना पूरा दिन रंग, गायन, नृत्य, स्वादिष्ट चीजें खाने, पीने, एक-दूसरे के गले मिलने, दोस्तों के घर पर मिलने और बहुत सारी गतिविधियों मे व्यतीत करते हैं।
1. होली का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व :-
होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। इसका उल्लेख भारत की पवित्र पुस्तकों,जैसे पुराण, दसकुमार चरित, संस्कृत नाटक, रत्नावली और भी बहुत सारी पुस्तकों में किया गया है। होली के इस अनुष्ठान पर लोग सड़कों, पार्कों, सामुदायिक केंद्र, और मंदिरों के आस-पास के क्षेत्रों में होलिका दहन की रस्म के लिए लकड़ी और अन्य ज्वलनशील सामग्री के ढेर बनाने शुरू कर देते हैं। लोग घर पर साफ- सफाई, धुलाई, गुझिया, मिठाई, मठ्ठी, मालपुआ, चिप्स आदि और बहुत सारी चीजों की तैयारी शुरू कर देते हैं। होली पूरे भारत में हिंदुओं के लिए एक बहुत बड़ा त्यौहार है, जो ईसा मसीह से भी पहले कई सदियों से मौजूद है। प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस त्यौहार का जश्न मनाने के पीछे कई किंवदंतियां रही हैं।
* होली उत्सव का पहला पौराणिक महत्व प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कथा है। बहुत समय पहले, हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस राजा था। उसकी बहन का नाम होलिका था और पुत्र प्रह्लाद था। बहुत वर्षों तक तप करने के बाद, उसे भगवान ब्रह्मा द्वारा पृथ्वी पर शक्तिशाली होने का वरदान प्राप्त हुआ। उन शक्तियों ने उसे अंहकारी बना दिया, उसे लगा कि केवल वह ही अलौकिक शक्तियों वाला भगवान है, तो उसने हर किसी से खुद को भगवान के रूप में उसे पूजा करने की मांग शुरू कर दी।
हालांकि, उसका बेटा जिसका नाम प्रहलाद था, अपने ही पिता के फैसले से असहमत था। प्रहलाद बचपन से ही बहुत धार्मिक था और हमेशा भगवान विष्णु को समर्पित रहता था।
अंत में वह अपने बेटे से तंग आ गया और मदद पाने के लिए अपनी बहन होलिका को बुलाया। उसने अपने भतीजे को गोद में रख कर आग में बैठने की एक योजना बनाई, क्योंकि उसे आग से कभी भी नुकसान न होने का वरदान प्राप्त था। उसने आग से रक्षा करने के लिए एक विशेष शाल में खुद को लपेटा और प्रहलाद के साथ आग में बैठ गयी। कुछ समय के बाद जब आग बडी और भयानक हुई उसकी शाल प्रहलाद को लपेटने के लिए उड़ी। होलिका जल गयी और प्रहलाद को भगवान विष्णु द्वारा बचा लिया गया।वह दिन जब प्रहलाद को बचाया गया था होलिका दहन और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाना शुरू कर दिया।
* होली महोत्सव का एक अन्य पौराणिक महत्व राधा और कृष्ण की कथा है। ब्रज क्षेत्र में होली के त्यौहार को मनाने के पीछे राधा और कृष्ण का दिव्य प्रेम है। ब्रज में लोग होली दिव्य प्रेम के उपलक्ष्य में प्यार के एक त्योहार के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग गहरे नीले रंग की त्वचा वाले छोटे कृष्ण को और गोरी त्वचा वाली राधा को गोपियों सहित सजाते हैं।
* दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में होली की अन्य किंवदंती, भगवान शिव और कामदेव की कथा है। लोग होली का त्यौहार पूरी दुनिया को बचाने के लिये भगवान शिव का ध्यान भंग करने के कामदेव के बलिदान के उपलक्ष्य में मनाते हैं।
* होली महोत्सव मनाने के पीछे एक और सांस्कृतिक धारणा है, जब लोग अपने घर के लिए खेतों से नई फसल लाते हैं तो अपनी खुशी और आनन्द को व्यक्त करने के लिए होली का त्यौहार मनाते हैं। 2. तांत्रिक महत्व:- होलाष्टक में और विशेषकर होली की रात में तांत्रिक लोग कई प्रकार की साधणाएँ करते हैं। होली की रात्रि दारुण रात्रि कहलाती है। इस समय में शत्रु शान्ति, रोग शान्ति, तांत्रिक क्रियाओं को नष्ट करने, भूत-प्रेत बाधाओं को दूर करने के लिये चंडी प्रयोग और नृसिंह प्रयोग का विशेष महत्व है।
3. सामाजिक महत्त्व:-
होली के त्यौहार का अपने आप में सामाजिक महत्त्व है, यह समाज में रहने वाले लोगों के लिए बहुत खुशी लाता है। यह सभी समस्याओं को दूर करके लोगों को बहुत करीब लाता है उनके बंधन को मजबूती प्रदान करता है।
4. वैज्ञानिक महत्त्व :-
प्रो0 भरत राज सिंह ,महानिदेशक, स्कूल ऑफ मैनेजमेन्ट साइंसेस व अध्यक्ष, वैदिक विज्ञान केन्द्र, लखनऊ के अनुसार :- यह त्यौहार साल में ऐसे समय पर आता है, जब मौसम में बदलाव के कारण लोगो में नींद और आलसीपन अधिक पाया जाता है। इसका मुख्य कारण ठंडे मौसम से गर्म मौसम का रुख अख्तियार होना है, जिसके कारण शरीर में कुछ थकान और सुस्ती महसूस करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, क्योंकि शरीर में नसों में ढीलापन आने से खून का प्रवाह हल्का पड़ जाता है और शरीर में सुस्ती आ जाती है और इसको दूर भगाने के लिए ही फाग के इस मौसम में लोगों को न केवल जोर से गाने, बल्कि बोलने से भी थोड़ा जोर पड़ता है और सुस्ती दूर हो जाती है । इस मौसम में संगीत को भी बेहद तेज बजाया जाता है, जिससे भी मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान होती है। इसके अतिरिक्त शुद्ध रूप में पलास आदि से तैयार किये गये रंग और अबीर,को जब शरीर पर डाला जाता है तो उसका शरीर पर अनोखा व अच्छा प्रभाव होता है।
होली का त्योहार मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है जो होलिका दहन की परंपरा से जुड़ा हुआ है। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 65-75 डिग्री सेंटीग्रैड (150-170 डिग्री फारेनहाइट) तक तापमान बढ़ता है। परम्परा के अनुसार जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को भी कीड़े-मकोड़े व बैक्टीरिया रहित कर स्वच्छता प्रदान करता है।
कहीं-कहीं होलिका दहन के बाद उस क्षेत्र के लोग होलिका की बुझी आग अर्थात् राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन करते हैं। दक्षिण भारत में होली, अच्छे स्वास्थ्य के प्रोत्साहन के लिए मनाई जाती है। होली के मौके पर अपने घरों की भी साफ-सफाई करने से धूल, मच्छरों और अन्य कीटाणुओं का सफाया हो जाता है। एक साफ-सुथरा घर आमतौर पर उसमें रहने वालों को सुखद अहसास देने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा भी प्रवाहित करता है।
5. सावधानी :-
कभी-कभी किसी रंग विशेष के रासायनिक असर से लोगों के शरीर में कई बीमारियों का जन्म होता है और जिसका इलाज उस रंग विशेष को बेअसर करके ही किया जा सकता है ।अतः बाजारू रंग का उपयोग नहीं करना चाहिए।
रंग खेलने के पूर्व व बाद में, उबटन का प्रयोग करना आवश्यक है, जो हमारी परम्परा से चला आ रहा है। इससे रंग के विषाक्त रसायन का असर शुन्य हो जाता है और रंग भी नहाते समय आसानी से छूट जाता है।उबटन के प्रयोग से कीड़े-मकोड़े व बैक्टीरिया का भी असर समाप्त हो जाता है।
पेन्ट आदि का उपयोग कतई नहीं करना चाहिए अन्यथा त्वचा के पोरो या छिद्र बंद होने से कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। पं. दिनेश शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) इंदौर(मध्यप्रदेश) संपर्क: 8103211222, 8770817904