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जीरापुर(सं.):- ऐसा लगने लगा कि शिक्षा का व्यवसायीकरण होता जा रहा है जिधर देखो उधर शैक्षणिक संस्थानों की भरमार नजर आती है निजी स्कूलों के अलावा देखने में आ रहा है कि नगर में कोचिंग सेंटर भी अपने पांव पसार चुकें हैं।
   जब इन कोचिंग सेंटर के बारे में जानकारी ली गई तो बिना मान्यता के धड़ल्ले से चल रहे हैं।
   जिसमें शासन के सारे नियम ताक में रखें है।
    शासकीय शिक्षक सहित अन्य शिक्षकों द्वारा बच्चों को कोचिंग पर पढ़ने की सलाह दी जाती है। जहां पर शासन के नियमों की अनदेखी होकर समय का कोई निर्धारण नहीं है, समय का कोई पाबंद नहीं होने से रात्रि में भी कोचिंग सेंटर धड़ल्ले से चलते हैं।
     
        *हर वर्ष बड़ाई जाती है फीस*
      दुसरी ओर देखा जाए तो प्राइवेट स्कूलों में बच्चों से  फीस के नाम पर बड़ी राशि वसूली जाती है, जबकि बच्चों को पढ़ाने वाले कतिपय शिक्षक तो अप्रशिक्षित भी है।      जो शिक्षक अप्रशिक्षित होते हैं उनका स्कूल संचालकों के रिकॉर्ड में क्या योग्यताएं हैं यह क्या दर्ज है अनुमान लगाना असम्भव हैं।
    यह बच्चों के भविष्य के साथ सीधे-सीधे खिलवाड़ है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि शिक्षकों की योग्यता क्या है।

            यह स्थिति अधिकांश निजी स्कूलों में मिल सकती है, शहर से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में स्थिति ज्यादा खराब है, जहां अधिकारी निरीक्षण के लिए पहुंचते ही नहीं है।
     प्राइवेट स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षक धड्ल्ले से पढ़ाने के पीछे मोटे-मोटे तीन कारण है। 
       पहला- अभिभावकों में जागरुकता की कमी। अभिभावक यदि स्कूल संचालक से यह पूछने लग जाए कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता क्या है। 
      शैक्षणिक दस्तावेज मांगने पर पोल खुल जाएगी। दो-शिक्षा अधिकारियों का बेपरवाह होना। 
   अपितु जिला शिक्षा विभाग से लेकर विकास खंड शिक्षा विभाग तक यह जांच नहीं होती है कि निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता क्या है। 
*हायर सेकंडरी पडे बेरोजगार को रोजगार*
 प्रशिक्षित शिक्षक अपनी योग्यता अनुसार वेतन चाहता है जबकि अप्रशिक्षित शिक्षक का वेतन कम रहता है।
*क्यों नहीं जाते शासकीय शिक्षक के बच्चे शासकीय स्कूल में*
आए दिन देखने में आता है कि अर्धशासकीय स्कूल का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत तक पहुंच जाता है ।
      परंतु दुसरे पहलु पर जायें तो एक शासकीय स्कूल का परीक्षा परिणाम 40 से 70%तक रहता है ऐसा क्यों क्योंकि शासकीय टीचर ही प्राइवेट स्कूलों में अध्यापन का कार्य करवाते हैं।
    और उनके बच्चों को भी अर्धशासकीय शालाओं में भेजते हैं ।
 *कहावत चरितार्थ है कि जिस घर का नमक खाया उस घर का नमक तो अदा करे*
ब्लॉक के ऐसे भी शासकीय टीचर हैं जो अपने स्कूल का परीक्षा परिणाम सुधार पाते नहीं है बल्कि प्राइवेट स्कूलों में अध्यापन कार्य करवा कर वहां का रिजल्ट80% से 100% करने में जुटे रहते हैं।
ऐसा नहीं कि सभी प्राइवेट स्कूलों में सम्पूर्ण अप्रशिक्षित शिक्षक पढ़ा रहे हैं, कुछ अप्रशिक्षित शिक्षकों को छोड़कर।
       हालांकि ऐसी संस्थाएं भी है जहां पूर्ण रूप से प्रशिक्षित शिक्षक पढ़ा रहे हैं। प्रशिक्षित शिक्षक के बारे में जानना है तो उनकी सैलेरी देखकर पता चल जाएगा। शिक्षा विभाग के नियमों की बात करें तो सरकारी ही नहीं, बल्कि प्राइवेट स्कूलों में भी पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता का डिसप्ले करना चाहिए। इसके लिए शिक्षकों के नाम, सब्जेक्ट व योग्यता के बारे में अलग से बोर्ड स्थापित कर लिखना चाहिए।
      वहीं शिक्षकों की सैलेरी का भुगतान बैंक अकाउंट से करने का प्रावधान है जहां बोर्ड पर शिक्षकों के नाम, योग्यता और सब्जेक्ट के बारे में लिखा हो। बैंक अकाउंट से सैलेरी का भुगतान भी गिनती के स्कूलों में ही किया जाता है।