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बोड़ा:-हिन्दू समाज के सोलह संस्कारों में एक मृत्युभोज को भी माना जाता है. धर्मग्रंथों के अनुसार कालांतर से मृत्युभोज में तेरहवीं से पहले या बाद में ब्राह्मण भोज या यूं कहें कि अधिकतम 13 ब्राह्मणों को भोज कराकर यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था, लेकिन कालांतर से चली आ रही इस परंपरा को निभाने में कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं. पर कई लोग अब इस परंपरा को अलविदा कह दूसरों को जागरूक कर रहें हैं.ऐसे में राजगढ़ जिले के रहने वाले राठौर समाज कुरावर के पूर्व अध्यक्ष,समाजसेवी व लेखक, व्यंगकार,ने सर्व प्रथम पहल अजय राठौर ने यह बीड़ा उठाया.
समाज के विरोध करने के बावजूद मृत्यु के उपरांत ब्रह्मण भोज, कन्या भोज नाम मात्र करके। बड़े स्तर पर मृत्युभोज ना करके राठौर समाज की धर्मशाला निर्माण में आर्थिक सहायता करके,गरीबों में कंबल और समाज के जरूरतमंद दिव्यांग व गरीबों की मदद करके, श्री राठौर तीर्थ उज्ज्जेन मे दान करना, सामुदायिक भवन निर्माण करना,पोधा रोपण कर उनकी देख भाल करके औरों को भी प्रेरित कर रहे हैं.कहते हैं कि किसी भी परंपरा को तोड़ने में समय लगता है. मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को खत्म होने में अभी बहुत वक्त लगेगा, लेकिन धीरे-धीरे समाज में बदलाव आयेगा और लोग इस कुप्रथा को खत्म करेंगे.।
अब मृत्यु भोज का बहिष्कार कर समाज के सामने न सिर्फ मिशाल पेश किया, बल्कि फिजूलखर्ची पर भी अंकुश लगाने का काम किया।
राठौर समाज कुरावर पूर्व अध्यक्ष अजय राठौर ने कई रूढि़वादी व्यवस्था को समाज से समूल नष्ट करने के लिए प्रयासरत हैं। जिसके कारण इस परिवार को समाज के कुछ लोगों का कोपभाजन भी बनना पड़ता है।

राठौर समाज पूर्व अध्यक्ष अजय राठौर ने भी मान लिया कि मौत के बाद मृत्यु भोज खिलाना एक गलत परम्परा है। अब परिवार के लोगों ने न सिर्फ वृद्ध की मौत के बाद मृत्युभोज देने से इनकार कर दिया है।
कुरावर राठौर समाज के पूर्व अध्यक्ष समाज अजय राठौर ने बताया कि लाखों रुपए खर्च करने के बाद जब किसी की मौत होती है तो परिवार में दुख की स्थिति होती है। ऐसे में मृत्युभोज कराने के लिए लोग कर्ज लेने के लिए भी मजबूर होते हैं। यह गलत प्रथा है। समाज में अब यह कोशिश होगी कि मृत्यु भोज नहीं दिया जाए। इसके लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।
हिंदुओं में किसी की मौत के बाद उसके दशकर्म के बाद मृत्युभोज दिए जाने की परम्परा पिछले कई दशकों से चली आ रही है। कहा जाता है कि मृत्यु भोज के बिना मृतक को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए हिंदू समाज में यह परम्परा कई दशकों से चल रहा है। हालांकि इस परम्परा को हिंदू धर्म के कई समाज ने खत्म करने की शुरुआत भी कर दी है।

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यदि समाज और संगठन इस कुप्रथा को पूरी तरह बंद करने के लिए सहमत हैं तो पदाधिकारी, समाज बंधुओ समाज की सहमति हमें वॉट्सएप पर भेज सकते हैं। हम आपकी सहमति को प्रकाशित करेंगे जिससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिल सके। जो पदाधिकारी नहीं हैं वे भी अपनी राय दे सकते हैं। मृत्यु भोज में शामिल नहीं होने का निर्णय लेने वाले भी सिर्फ सहमत लिखकर आप हमें 98932 89431पर वॉट्सएप भेज सकते हैं।