विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर का मुक्तिधाम कई मायनों में पवित्र स्थान माना जाता है. बहुत से लोग शवों की अंत्येष्टि के लिए बनारस नहीं जा पाते हैं. वैसे लोगों की कामना रहती है कि बक्सर के मुक्तिधाम में ही शवों का अंतिम संस्कार किया जाए. पौराणिक मान्यता ये है कि गंगा जब उत्तरवाहिनी होती है तब मोक्ष प्रदायनी होती है. बिहार में कुछ जगहों पर गंगा उत्तरवाहिनी है, जिसमें बक्सर भी शामिल है. यहां कैमूर, रोहतास, भोजपुर और बाकी जगहों से भी लोग शव का अंतिम संस्कार करने पहुंचते हैं.

बक्सर श्मशान घाट में दिन-रात चिताएं जलती रहती हैं. यहां एक दिन में 100 से अधिक शव आते हैं. मुक्तिधाम के पांडा जोगेंद्र ने बताया कि यहां दिन-रात चिताएं जलती रहती हैं. ये स्थान मोक्ष प्राप्ति का स्थान है. ऐसी मान्यता है कि यहां बनारस में रहकर जब कोई अपना देह त्यागता है तो उसके शव को वहीं जलाने पर मुक्ति मिलती है. वहीं, मृत शरीर को बक्सर में जलाने से मुक्ति मिलती है. जोगेंद्र ने बताया कि यहां गंगा उत्तरवाहिनी है, जो मोक्ष प्रदान करने वाली है.

जागृत है बक्सर का श्मशान घाट
जोगेंद्र पांडा ने बताया कि शाहाबाद से लोग अपने परिजन के पार्थिव शरीर को यहां मोक्ष की कामना लेकर आते हैं. उन्होंने बताया कि यहां हर वक्त चिताएं जलती रहती हैं. इस श्मशान का एक नियम है कि रात 12 बजे कोई भी शव को जलाने से रोक दिया जाता है, क्योंकि लोक मान्यताओं के अनुसार पंच तत्व विश्राम की मुद्रा में रहते हैं. जैसे गंगा मइया उस वक्त विश्राम करती हैं, वैसे ही धरती, आकाश, अग्नि, वायु भी विश्राम करते हैं. ये सोच कर मध्य रात्रि को चिता जलाना निषेध है. बक्सर श्मशान जागृत श्मशानों में एक है. श्मशान में स्थित माता काली की मंदिर भी जागृत मंदिरों में से एक है.